

COMMUNICATION TODAY
Media Quarterly (Journal)
(Lighthouse of Media Professionals)
A Double-Blind Peer-Reviewed Bilingual Media Quarterly
191st National Webinar | Dec 18, 2025

📅 Date: Thursday | Dec 18, 2025
🕠 Time: 5:30 PM onwards
💻 Mode: Online (Webinar)
🟢 Organised by: Communication Today (Quarterly Media Journal, Jaipur)
🤝 In collaboration with: Bharati Vidyapeeth, New Delhi
🎯 Subject: Women Influencers: The New Power in Social Media
📢 Speaker:
- Sweta Rani
Gold Medalist & Junior Research Fellow
School of Journalism and New Studies, IGNOU
New Delhi
🗓 Schedule:
🔹 Login & Networking: 5:30 PM – 6:00 PM
🔹 Experts’ Talks: 6:00 PM – 7:15 PM
🔹 Discussion & Certification: From 7:15 PM onwards
🔗 Join the Webinar:
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📝 Advance Registration (Free):
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With warm regards,
Prof. Sanjeev Bhanawat Editor, Communication Today, Jaipur
Prof. M. N. Hoda Director, Bharati Vidyapeeth, New Delhi
190th National Webinar | Dec 15, 2025
190वां राष्ट्रीय वेबिनार
विषय: मानव संचार के प्रतीक: उड़ान, परिंदे और संदश-वहन परंपराएँ
आयोजक: कम्युनिकेशन टुडे एवं भारती विद्यापीठ, नई दिल्ली
दिनांक: सोमवार, 15 दिसम्बर, 2025
जयपुर से प्रकाशित प्रतिष्ठित मीडिया त्रैमासिक कम्युनिकेशन टुडे और भारती विद्यापीठ, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 190वें राष्ट्रीय वेबिनार में “मानव संचार के प्रतीक: उड़ान, परिंदे और संदेश-वहन परंपराएँ” विषय पर अत्यंत प्रेरक, शोधपूर्ण और विचारोत्तेजक विमर्श प्रस्तुत किया गया। यह वेबिनार संचार के इतिहास, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं को समझने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण अकादमिक प्रयास सिद्ध हुआ।
मुख्य वक्ता के रूप में राजस्थान विधान सभा के पूर्व मुख्य अन्वेषण एवं संदर्भ अधिकारी डॉ. कैलाश चन्द सैनी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आधुनिक डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों के विकास से बहुत पहले, परिंदे—विशेषकर कबूतर—सूचना और संदेश पहुँचाने का सबसे भरोसेमंद साधन रहे हैं। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए बताया कि लगभग 3000 वर्ष पूर्व प्राचीन रोम में महत्वपूर्ण समाचार, युद्ध संबंधी सूचनाएँ और प्रशासनिक संदेश कबूतरों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजे जाते थे। यह परंपरा मानव संचार के प्रारंभिक संगठित रूपों में से एक मानी जा सकती है।
डॉ. सैनी ने अपने वक्तव्य में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के उदाहरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार प्रशिक्षित कबूतर दुश्मन की भीषण गोलाबारी, विषैली गैसों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच उड़कर सुरक्षित संदेश पहुँचाते थे। उन्होंने कहा कि कई ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात की साक्षी हैं कि समय पर पहुँचे इन संदेशों ने न केवल सैनिक टुकड़ियों को घिरने से बचाया, बल्कि कई बार युद्ध के निर्णायक मोड़ों पर उसकी दिशा तक बदल दी। इस संदर्भ में कबूतरों को “मूक योद्धा” कहा जाना सर्वथा उचित है।
भारतीय सांस्कृतिक संदर्भों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सैनी ने कहा कि हमारी लोकसंस्कृति, लोककथाओं और पौराणिक परंपराओं में भी परिंदों को संदेशवाहक के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। उन्होंने बताया कि देवी-देवताओं के वाहन—चाहे वह गरुड़ हों, हंस हों या अन्य जीव—हमारे समाज में प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व का प्रतीक हैं। यह परंपरा यह संदेश देती है कि सृष्टि का हर जीव अपने-अपने ढंग से संचार और संतुलन में योगदान देता है।
अपने वक्तव्य के समापन में डॉ. सैनी ने कहा कि आज के डिजिटल युग में, जब संदेश सेकंडों में एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक पहुँच जाते हैं, तब हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संचार की नींव प्रकृति, जीव-जंतुओं और मानवीय बुद्धि के समन्वय से पड़ी थी। आधुनिक तकनीक उसी दीर्घ विकास यात्रा का अगला चरण है।
कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के जनसंचार केंद्र के पूर्व अध्यक्ष एवं कम्युनिकेशन टुडे के संपादक प्रो. संजीव भानावत ने कहा कि संचार केवल तकनीकी उपकरणों का नाम नहीं है, बल्कि यह मनुष्यता का मूल तत्व है। उन्होंने कहा कि परिंदों की सदियों पुरानी संदेश-वहन परंपराओं से लेकर आधुनिक हवाई उड़ानों, उपग्रह संचार और इंटरनेट तक—मानव सभ्यता ने हमेशा दूरी मिटाने और आपसी जुड़ाव बढ़ाने के प्रयास किए हैं।
प्रो. भानावत ने यह भी रेखांकित किया कि कबूतर विश्वास और धैर्य के प्रतीक रहे हैं, जबकि उड़ान मानव की आकांक्षा, विस्तार और सीमाओं से परे जाने की चाह का संकेत बनकर उभरी है। तकनीक समय के साथ बदलती रही है, किंतु संदेश भेजने के पीछे की मानवीय भावनाएँ—आशा, चिंता, प्रेम और भरोसा—आज भी वैसी ही बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि संचार वास्तव में मानवता को जोड़ने वाला वह अदृश्य धागा है, जो समय और स्थान की सीमाओं को पार कर जाता है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में भारती विद्यापीठ की सहायक प्रोफेसर प्रियंका सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इसके पश्चात उन्होंने आमंत्रित वक्ता का ई-बुकें और ई-स्मृति चिन्ह प्रदान कर औपचारिक स्वागत किया।
इस वेबिनार के सफल आयोजन में जयंत राठी, पुष्पेंद्र सिंह, डॉ. सुनील कुमार, अंबुश (भारती विद्यापीठ) तथा डॉ. पृथ्वी सेंगर (IIMT यूनिवर्सिटी, मेरठ) का उल्लेखनीय सहयोग रहा।
Special Moments
डॉ महेंद्र भानावत
लोकपरंपराओं के अडिग प्रहरी को अंतिम प्रणाम
लोक साहित्य, परंपराओं और संस्कृति के महान संरक्षक डॉ. महेंद्र भानावत का निधन एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपने जीवन को भारतीय लोककथाओं, लोकगीतों, कठपुतली कला और परंपरागत लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में समर्पित किया। उनके लेखन का विस्तार अत्यंत व्यापक था—उन्होंने लगभग 100 पुस्तकें लिखीं, 10,000 से अधिक लेख प्रकाशित किए और अपने विशिष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के 80 से अधिक पुरस्कार प्राप्त किए।
डॉ. भानावत ने लोकसंस्कृति को शोधपरक दृष्टि से प्रस्तुत कर उसे नई पहचान दिलाई। उनकी विद्वता, सरलता और समर्पण भाव ने उन्हें लोकसंस्कृति जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
आज उनके उड़ावणा के अवसर पर हम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके विचार और कार्य सदा अमर रहेंगे।
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एक मुलाकातः रीना अशोक जारोली से
प्रेम की मिसाल: पति को किडनी दान और कैंसर से संघर्ष
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही एक महिला के लिए जीवन पहले से ही एक चुनौती बन जाता है। ऐसे में इस महिला ने न केवल अपनी बीमारी से संघर्ष किया, बल्कि अपने पति के जीवन को बचाने के लिए उसे अपनी किडनी भी दान कर दी। यह निर्णय न केवल साहस और निस्वार्थता का परिचायक है, बल्कि यह हमें मानवीय शक्ति और करुणा की गहराई का भी अहसास कराता है।
इस कहानी के विभिन्न आयाम हैं। पहला आयाम है, संघर्ष और विजय का। कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते हुए, शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बने रहना, और उसके बावजूद अपने पति की ज़रूरत को प्राथमिकता देना अद्वितीय साहस का उदाहरण है। यह महिला न केवल एक योद्धा है, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद भी हम दूसरों के लिए कितनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
दूसरा आयाम है, निस्वार्थ प्रेम और समर्पण का। पति-पत्नी के रिश्ते की यह कहानी हमें यह दिखाती है कि सच्चे प्रेम और समर्पण में कोई सीमा नहीं होती। यह महिला हमें यह सिखाती है कि प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में भी व्यक्त होता है।

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